________________ (191) __ शंका समाधान करने वाला, सुवक्ता वाग्ब्रह्म, सर्वज्ञ अर्थात् सिद्धान्तशास्त्र और यावत् आगमों के पारगामी, वार्तिक तथा सूत्रों को शब्द और अर्थ के द्वारा सिद्ध करने वाले होने से कवि, अर्थ में मधुरता का द्योतक तथा मार्ग के अग्रणी होते हैं। उपाध्यायपने में शास्त्र का विशेष अभ्यास ही कारण है, क्योंकि जो स्वयं अध्ययन करता है, और शिष्यों को भी अध्ययन कराता है, वही गुरु उपाध्याय है। उपाध्याय में व्रतादि के पालन करने की शेष विधि सर्व मुनियों के समान है।' सूत्रार्थ अर्थात् सूत्र और उसका अर्थ। तात्पर्य यह है कि सूत्र पर भाष्य का अर्थ, भाष्य पर नियुक्ति का अर्थ, नियुक्ति पर चूर्णी-टीका का अर्थ यह सर्व सूत्र के अर्थ में ही सम्मिलित होता है। आचार्य अर्थ की देशना देते हैं। जिस से सूत्र के भावों का बोध होता है, ऐसे पदार्थों का उपदेश देते हैं। जबकि उपाध्याय सूत्र पाठ देते हैं तथा सूत्र का भाष्य-चूर्णी टीका के अन्तर्गत अर्थ की वाचना भी देते हैं। यद्यपि उपाध्याय आचार्य नहीं है, आचार्य पद पर विराजमान नहीं है, तथापि उपाध्याय स्वाध्याय में तत्पर एवं उद्यत रहते हैं। आचार्य शासन परम्परा का विस्तार करते हैं, तो उपाध्याय सूत्रार्थ परम्परा का विस्तरण करते हैं। वे सरिगण के- आचार्य के समुदाय के सहायक होते है। सूत्रार्थ की वाचना से मुनियों को बोध होता है। वे स्वाध्याय-पठन-पाठन में रत रहते हैं। इस प्रकार उपाध्याय मुनियों के ज्ञान-दान से मुख्यतया सहायभूत होते हैं। मुनियों को आहार लाकर देना, रुग्णावस्था में वेयावच्च करना यह सहायता है, किन्तु क्षुल्लक है। किन्तु ज्ञान दान सर्व में श्रेष्ठ कहा गया है। क्योंकि ज्ञान होने पर विशेष रूप से जयणा-यतना (दया) करे। हेय-उपादेय पदार्थों का ज्ञान करके तद्विषयक आचरण की शुद्धता करता रहे। इस प्रकार उपाध्याय सुगति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ज्ञान के अभाव में संयम पालन न होने से दुर्गति का भोग बन सकता है। अतः उपाध्याय दुर्गति के द्वार बन्द करके सद्गति का सर्जन करते हैं। ज्ञानदान करके महान् उपकार करते हैं। उपाध्याय मद-माया-मान का त्याग करके सदैव सावधान हैं, जागृत हैं, उद्यमशील है। (1) वे जागृत हैं, उपयोगवान् एवं विवेकवान् है। पात्र की योग्यता एवं . तत्परता देखकर ज्ञानदान करते हैं। (2) सावधान हैं-सूत्रार्थ के दान में कभी थकान का अनुभव नहीं करते। 1. पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध 659-662