________________ (192) (3) उद्यमशील हैं-सूत्र विपर्यास तथा अर्थ विपर्यास न हो जाये। एक अक्षर अथवा पदार्थ के अर्थ में विपर्यास न हो जावे, अतः पूर्णतया उद्यमशील एवं सावधान रहते हैं। (4) सूतार्थ का दान देने में, जैसे-तैसे पठन-पाठन में तत्पर नहीं होते। वे सरल भावों से व्यवस्थित रीति से एवं सम्पूर्णतया पढ़ाते हैं। उपाध्याय प्रवादी अर्थात् प्रकृष्ट-उत्कृष्ट वादी रूपी हाथियों को परास्त करने में सिंह के सदृश हैं। उनके समक्ष अनेकान्त सिद्धान्त पर रचित विपुल जिनागम का ज्ञान ऐसा महान है कि उनके समक्ष एकान्तवादी वादियों का ज्ञान शूद्र-तुच्छ हो जाता है। क्योंकि उनके पास जिनागमों का ज्ञान सचोट एवं संगीन है कि प्रवादियों की प्ररूपणा का खण्डन करते देर नहीं लगती। ऐसे प्रभुत्वज्ञानी, अगाधज्ञानी, सिद्धज्ञान वाले उपाध्याय हैं। उपाध्याय क्षमा युक्त, लोभ से मुक्त, ऋजुता-मृदुता संयुक्त हैं तथा सत्य शौच, अकिंचन-अपरिग्रह, तप, संयम आदि गुणों में रक्त हैं तथा समिति एवं सुगुप्ति में गुप्त हैं-ब्रह्मचर्य से रमणीय हैं। उपाध्याय का मुख्य गुण विनय है। क्योंकि विनयगुण मोक्ष मार्ग के लिए बहुत उपयोगी है। इसके बिना मोक्षमार्ग में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता। वास्तव में विनय से ही मोक्षमार्ग का प्रारम्भ होता है। विनय के बिना उत्तम प्रकार की विद्या प्राप्त नहीं होती। इस विद्या-विज्ञान के बिना मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होती। छोटे बड़े सब गुणों का मूल विनय है। इस चौथे पद में रही हुई आत्मा विनयगुण का पालन करती है और दूसरों को भी विनय गुण की शिक्षा देती है। आत्मिक गुणों की प्राप्ति में ऐसा नियम है कि जिस गुण की आत्मा हार्दिक इच्छा करता है और उसे प्राप्त करने के लिए सच्चे अतःकरण से प्रयास करता है, वह गुण उसमें प्रगट हुए बिना नहीं रहता। विनयगुण यानि बाह्य अभ्यंतर सर्व प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियों का उत्पत्ति स्थान / ___ जो शिष्य के हित का उपाय का चिन्तन करते हैं, वे उपाध्याय है। आचार का उपदेश करने से आचार्य तथा अन्य को स्वाध्याय कराने से उपाध्याय है। अथवा अर्थ प्रदायक आचार्य है तथा सूत्र प्रदायक उपाध्याय है। 1. विशेषावश्य. भा. गा.३१९९-३२००