________________ (175) उन्नति में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे, ऐसा लक्ष्य केन्द्र में स्थापित करके येनकेन प्रकारेण वे संघ की, शासन की प्रभावना करते हैं। शासन की प्रभावना होवे वैसी प्रवृत्ति करने वाले प्रभावक कहे जाते हैं। ये प्रभावक आठ प्रकार के हैं। 1. प्रभावकता 1. प्रावचनिक 2. धर्मकथी 3. वादी 4. नैमितिक 5. तपस्वी 6. विद्यावान् 7. सिद्ध 8. कवि (1) प्रावनिक-तत्कालीन (तत्संबंधी समय में विद्यमान शास्त्र) शास्त्रों के ज्ञाता ऐसे प्रावचनिक आचार्य प्रवचन के माध्यम से चतुर्विधसंघ को सन्मार्ग में प्रवृत्त करने के लिए तत्पर रहते हैं। प्रवचन अर्थात् शास्त्र। ये आचार्य वर्तमान काल में विद्यमान श्रुत के अर्थ को धारण करने वाले "प्रावचनिक" नामक प्रभावक होते हैं। (2) धर्मकथी-अपने उपदेश के अद्भुत कौशल के द्वारा भव्य जीवों को प्रतिबोध देने वाले 'धर्मकथी' प्रभावक होते हैं। ये अपनी प्रवचन की कुशलता से लोगों को खुश करते हुए उनके हृदय की शंकाओं का समाधान करते हैं एवं सन्मार्ग में बोध देकर प्रवृत्त करते हैं। (3) वादी-ये प्रभावक तर्कशास्त्र का गहन अध्ययन करते हैं। प्रसंग आने पर ये प्रभावक अपनी तर्क निपुणता के द्वारा अन्य दर्शनी को परास्त करके जिन शासन की जय जयकार करते हैं। वाद में विजयी होने के कारण ही ये वादी कहलाते हैं। जैन शासन में ऐसे अनेक वादी प्रभावक आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अन्य दर्शनी प्रतिवादी के साथ वाद करके विजय की वरमाला पहनी। (4) नैमित्तिक-ये प्रभावक ज्योतिष आदि विभिन्न शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं। ये जैसे-तैसे सांसारिक कार्यों में निमित्त को नहीं कहते, लेकिन जब कभी जैन शासन की महान् प्रभावना का प्रसंग आता है, तब निमित्त कह कर शासनशोभा में अभिवृद्धि करते हैं। (5) तपस्वी-जिन शासन में तपस्वी' नामक पाँचवें प्रभावक हैं। 6 बाह्य और 6 अभ्यंतर इन बारह प्रकार के तप को जीवन में विशेष रूप से अपनाते हैं। जिनेश्वर प्रभु की आज्ञा के अनुसार, आस्रवों का त्याग करके संवर भाव में प्रवृत्त होते हैं। क्रोधादि कषायों पर विजय प्राप्त करके अनुपम समता को आत्मसात् करके तपस्या के माध्यम से श्री संघ की प्रभावना करते हैं।