________________ (188) इस प्रकार इतर परम्पराओं में भी आचार्यपद पर ध्यान अनुलक्षित किया है। जैन परम्परा जहाँ संघ के नेतृत्व का, संचालन, पंचाचार पालन, अध्ययन-अध्यापन एवं संयम निष्ठा पर विशेष बल देती है, वहाँ इतर परम्परा में अध्ययन-अध्यापन हेतु विशेष जोर दिया गया है। इस प्रकार तृतीय परमेष्ठी आचार्य पद का यहां अन्य परम्परा एवं जैन परम्परा के सन्दर्भ में विवेचन किया गया है।