________________ (169) 4. वस्तुज्ञान-कदाचित् विवाद-प्रसंग में राजादिक सत्तावान् व्यक्ति का आगमन हो जाये तो वह राजा न्यायी है या अन्यायी, निष्पक्ष है या पक्षपाती? कपटी है या सरल, नम्र है या अभिमानी इस प्रकार पूर्व में सर्व जानकारी लेकर ही वाद करना। - इस प्रकार आचार्य को बहुमुखी प्रतिभा के धनी होना चाहिये। वाद की विषय वस्तु का भिन्न दृष्टिकोणों से चिन्तन करके वाद करना चाहिये क्योंकि उसकी विजय संघ की विजय एवं पराजय संघ की पराजय है। स्वयं एवं संघ गौरवान्वित हो यह आचार्य को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये। 8 संग्रहपरिज्ञा सम्पदा यद्यपि श्रमण निष्परिगृही होते हैं, तथापि साध्वाचार के अनुकूल, उपयोगी वस्तुओं का निर्ममत्व होकर ग्रहण करते हैं। इसके भी चार प्रकार हैं 1. गणयोग-बालक, दुर्बल, गीतार्थ, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, नवदीक्षित आदि साधुओं का निर्वाह हो सके, वैसे क्षेत्रों का ध्यान रखे। 2. संसक्त-बालक, दुर्बल, गीतार्थ, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, नवदीक्षित आदि साधुओं का निर्वाह हो सके, वैसे क्षेत्रों का ध्यान रखे। 3. क्रियाविधि-जिस काल में जो क्रिया करने की हो उस काल में तत्संबंधी उपयोगी साधनों का संग्रह करें। 4. शिष्योपसंग्रह-व्याख्यानदाता, वादी, विजयी, वैयावच्ची इत्यादि शिष्यों का संग्रह करे। इसका ध्यान रखना आवश्यक है कि उनके शिष्य श्रमण जीवन के नियमोपनियम का सम्यक् सम्पादन करे। ___ आचार्य का प्रत्येक कार्य उसके अन्तेवासियों का आदर्श होता है। उन पर उसका अमिट प्रभाव पड़ता है। आचार्य स्वयं वयपर्याय (ज्येष्ठ) श्रमणों का आदर करेंगे तो अन्तेवासियों में भी सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित हो सकेगा। अतः आचार्य अपने शिष्य-प्रशिष्य की सार संभाल करे। इस तरह आचार्य इन आठ सम्पदा से युक्त होते हैं। ये आठ सम्पदाएँ उनके. गौरव की वृत्ति करने में सहायक होती हैं। 1. दशा 4.12