________________ (150) सांख्य के मतानुसार "जिस प्रकार कुंभार का चाक उसका कार्य हो जाने के पश्चात् भी संस्कार-वेग वशात् कुछ समय तक घूमता ही रहता है। उसी प्रकार तत्त्वज्ञान उत्पन्न हो जाने के बाद भी विवेकसम्पन्न व्यक्ति का शरीर गिर नहीं जाता। अर्थात् उसकी देहलीला समाप्त नहीं होती। यद्यपि तत्त्वज्ञान के कारण धर्म-अधर्म वर्तमान देह में अपना फल देने में असमर्थ होते हैं। जिससे तत्त्वज्ञानी को जन्मान्तर में शरीर धारण करने की कोई शक्यता होती नहीं। तत्त्वज्ञान के प्रभाव से पुनः शरीरोत्पत्ति होना संभव नहीं होता। आरब्ध धर्म-अधर्म का क्षय भोग से हो जाने पर, तत्त्वज्ञानी पुरुष के देहपात के पश्चात् ही अनेकान्तिक एवं आत्यन्तिक मुक्ति प्राप्त होती है।" क्या सब जीव मुक्त होने में समर्थ हैं? इस प्रश्न का समाधान सांख्य करता है कि सब जीव मुक्त होने योग्य हैं, परन्तु सब ही मुक्तिवरण कर लेंगे तो संसार का अन्त आ जावेगा, यह शक्य नहीं क्योंकि जीव अनन्त है। अनेक पुरुषों को कैवल्य प्राप्त हो जाने पर भी अनन्तजीव शेष रहते हैं। परिणामस्वरूप संसार का भी अन्त नहीं हो सकेगा। इस प्रकार सांख्यदर्शन में मुक्ति किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है, उसके स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। योगदर्शन में कैवल्य और मुक्ति सांख्यदर्शन की भांतियोग दर्शन भी यह स्वीकार करते हैं कि द्रष्टा एवं दृश्य का संयोग ही दुःख का कारण है। एवं संयोग का कारण अविद्या है। इस अनादिकालीन संयोग के कारण ही प्रकृति एवं पुरुष भ्रान्त होकर अपने स्वरूप को भुला बैठे हैं, अतः समस्त दुःखों से आत्यन्तिक निवृत्ति हेतु इस अविद्या निमित्तक संयोग को हटाना परमावश्यक है। इस अविद्या का नाश हो जाने पर जो बुद्धिसत्त्व एवं पुरुष के संयोग का अभाव होता है, वही मोक्ष कहा जाता हैं। इस प्रकार दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति ही परम पुरुषार्थ है।' १.सां.का.६७ 2. सां. का 68 3. योग सूत्र 2.17 4. वही 2.24 5. वही 2.25 6 व्यासभाष्य पृ. 231 7. तत्त्ववैशारदी पृ. 239, योग वार्तिक पृ. 231