________________ (153) है। यह एक अनुत्पन्न, अजात और असर्जित स्थिति होती है। यदि ऐसा न हो तो जन्म आदि से मुक्ति भी न हो। चूंकि अनुत्पन्न आदि स्थिति है इसलिए जन्म आदि से मुक्ति मिल जाती है। वस्तुतः इच्छा द्वेष और श्रम का विनाश ही निर्वाण है। इस प्रकार निर्वाण का अनुभव करने वाला सर्वोच्च तत्त्वद्रष्टा कहा जाता है। वह ऐहिक तथा पारलौकिक तृष्णाओं, कष्टों और वासनाओं से मुक्त रहता है। वह चिन्ताओं से मुक्त और शांत है तथा परमानन्द की अनुभूति करने वाला है।' पुनः कहा है कि स्वास्थ्य सबसे बड़ी देन है, संतोष सबसे बड़ा धन है। मिलिन्द पज्हो में निर्वाण को विधेयात्मक, पारलौकिक और सर्वोच्च प्रसन्नतादायक कहा है। वास्तव में वह अनुभवनीय है, वर्णनीय नहीं। निर्वाण अनन्त सुख है तथा दुःखों से पूर्णतः मुक्त है। जैसे समुद्र का जल मापा नहीं जा सकता, उसी प्रकार निर्वाण की अगाधता भाषा द्वारा व्यक्त नहीं की जा सकती। वह तष्णा की मुक्ति है और फलतः जन्म, मरण, जरा, मृत्यु आदि से दूर है। भगवान् बुद्ध स्वयं भी कहते हैं कि ब्रह्मचर्य का चरम लक्ष्य निर्वाण है, इसके आगे क्या होता है? यह मत पूछो। स्पष्ट है निर्वाण की स्थिति विचार की कोटि से परे है। भगवान् बुद्ध ने अनेक अवसरों पर इसे परकल्याण और परम आनन्द की स्थिति बतलाया है। परन्तु निर्वाण इतना अगाध है कि बुद्धि की कोटियों द्वारा भी उसे प्राप्त नहीं कर सकते। और न ही भाषा के द्वारा उसकी अभिव्यक्ति कर सकते हैं। निर्वाण के संबंध में सभी दृष्टिकोणों का समन्वय करते हुए डॉ. राधाकृष्णन लिखते हैं कि 'बुद्ध का अपना निजी मत संभवतः यह रहा कि निर्वाण पूर्णता की एक ऐसी दशा है जिसे हम सोच नहीं सकते, और यदि इसका वर्णन करने को हमें बाध्य ही होना पड़े तो सबसे उत्तम यह होगा कि हम उसकी अनिर्वचनीयता का निषेधात्मक कथन द्वारा एवं उसके तत्त्व की समृद्धिशीलता 1. उदान 8.1, 3 २.संयुक्त निकाय 4.251 3. मज्झिमनिकाय भाग 2 पृ. 121 4. धम्मपद गा. 204 ५.मिलिन्द प्रश्न 3.4.6) 6. मार सुत्त (सं. नि.)