________________ (154) का विधानात्मक गुणविधान द्वारा वर्णन करने का प्रयत्न करे, किन्तु बराबर इस बात का ध्यान बना रहना चाहिये कि इस प्रकार के वर्णन केवल निकटता को ही दर्शाते हैं, वे सम्पूर्ण नहीं हो सकते।' इस मत को कि बुद्ध के लिए निर्वाण केवल राग द्वेष और मोह का ही क्षय है, एक और तथ्य से भी समर्थन मिलता है। वे बार-बार यह कहते हैं कि संसार में आग लग गई है-और यह आग जरा मरणकी, रागद्वेष की और मोह तृष्णा की इस मोक्ष मार्ग पर आरूढ़ होने के लिए बौद्ध दर्शन में आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग का विधान किया है 1.सम्यग दृष्टि-दुःख का ज्ञान, दुःख के समुदय का ज्ञान, दुःख के निरोध का ज्ञान तथा दुःख निरोध गामीमार्ग का ज्ञान होना। 2. सम्यक् संकल्प-त्याग का संकल्प, वैर विरोध और हिंसा से अलग रहने का संकल्प ही सम्यक् संकल्प है। 3. सम्यक् वाचा-असत्य बोलना, कटुभाषण, निन्दा चुगली, आदि से विरत रहना सम्यक् वाचा है। 4. सम्यक् कर्मान्त-जीव हिंसा, चोरी, अब्रह्म से विरत होना ही सम्यक् कर्मान्त है। 5.सम्यक् आजीव-श्रावक का मिथ्याचार आजीव (चोरी) आदि को छोड़कर सम्यक् आजीव से अपनी जीविका चलाना सम्यक् आजीव है। 6. सम्यक् व्यायाम-अकुशल धर्मों के अनुत्पाद के लिए तथा कुशल अनुत्पन्न अकुशल धर्मों के उत्पाद के लिए प्रयत्न करना, सम्यक् व्यायाम है। 7. सम्यक् स्मृति-उठते, बैठते, खाते, पीते, चीवर ओढ़ते संक्रमण करते निरन्तर सेवनीय धर्मों की स्मृति बनाए रखने का नाम सम्यक् स्मृति है। 8. सम्यक् समाधि-सम्यकदृष्टि से लेकर सम्यक् स्मृति पर्यन्त जो इन सात अंगों से चित्त की एकाग्रता है, उसी को हेतु और परिष्कार के साथ सम्यक् समाधि कहते हैं। चार आर्य सत्यों में चतुर्थ सत्य निवार्ण प्राप्ति के साधन के रूप में अष्टाङ्गिक मार्ग को स्वीकार किया है। निर्वाण के इस मार्ग को मध्यम मार्ग कहा है। यह 1. भारतीय दर्शन भाग. 1 पृ. 417) 2. आदित सुत्त संयुक्त निकाय)