________________ (156) जीवन्मुक्ति संभव है। यह जीवन्मुक्त कुलाल के चक्र के घूमने के सदृश स्थित रहता है। उसके जीवन के पश्चात् विदेह मुक्ति होती है। ___ योग दर्शन में ऋतम्भरा प्रज्ञा का उदय ही जीवन्मुक्ति कहा है। उस समय योगी जीवन से संयुक्त होने पर भी दुःखों से असंश्लिष्ट रहता है। दग्ध बीजांकुरों के समान उसके क्लेश दग्ध हो जाते हैं। चित्त की विक्षिप्तता इसमें संभव नहीं। इस अवस्था को धर्ममेघ समाधि कहते हैं। इसका लाभ होने से जीवन होने पर भी मुक्त है। फलस्वरूप क्लिष्ट वृत्तियों का उपशम होने पर जीवन दशा में ही योगी कैवल्य लाभ करते हैं। अद्वैतियों की जीवन्मुक्ति कुछ भिन्न है। तत्त्व साक्षात्कार होने पर उत्क्रमण के बिना ही जीव यहीं पर ब्रह्मानन्द का अनुभव करता है। शंकराचार्य और उनकी शिष्य परम्परा ने जीवन्मुक्ति को मान्य किया है, उसका समर्थन किया है किन्तु मण्डन मिश्र एवं वाचस्पति मिश्र आदि ने इसे सिद्ध अवस्था ने मानकर साधक अवस्था में इसका अन्तर्भाव कर लिया है। श्रुतियों एवं उपनिषद में उसका साक्षात् निर्देश किया है कि जीवन्मुक्ति का निषेध तो किया ही नहीं जा सकता। वहाँ स्पष्ट कहा है कि जब मानव हृदय में स्थित सभी वासनाओं से मुक्त हो जाता है तो मनुष्य अमर हो जाता है, यहीं पर ब्रह्म का अनुभव करता है। वास्तव में पुनः पुनः। ईश्वर का अभ्यास करने से संसार दशा में तिरोहित हुए आवरणों का नाश होने पर धर्म अभिव्यक्त हो जाते हैं। तब जीवन अवस्था में ही जीव ब्रह्म हो जाता है। इस प्रकार सभी आस्तिक और नास्तिक दर्शनों द्वारा जीवन्मुक्ति को स्वीकार किया गया है। सभी दर्शनों ने मुक्तावस्था से पूर्व यह जीवन्मुक्तावस्था अनिवार्य मान्य किया है। किन्तु मुक्तावस्था के पश्चात् विदेहमुक्त की क्या स्थिति है, इसका विवेचन जितनी सूक्ष्मता से जैन दर्शन में किया है, इतर मतों में उसको स्थान नहीं दिया गया है। जैन परम्परा का यह मौलिक चिन्तन है। मुक्त होना, उसकी प्रक्रिया, उनका ज्ञान-दर्शन-सुख, उनकी स्थिति, अवगाहना (स्वकायस्थिति) उनका प्रतिष्ठान आदि अनेक सिद्धावस्था एवं सिद्धिगति का निरूपण अत्यन्त गहनता से विशद रूप से किया है। इस प्रकार मुक्तावस्था का विश्लेषण अन्य किसी धर्म-दर्शन में दृष्टिगत नहीं होता। आत्मा की मुक्तावस्था को सर्वदर्शन एकमत से अंगीकार करके भी मुक्तावस्था के स्वरूप-स्थिति आदि का जिक्र नहीं किया गया। मात्र जैन परम्परा इसका विशद वर्णन प्रस्तुत करती है।