________________ (157) अध्याय-5 पंच परमेष्ठी का तृतीयपद-आचार्य आचार्य की अवधारणा -आचार्य : व्युत्पत्तिपरक अर्थ एवं पर्यायें प्वरूप : लौकिक-धार्मिक (क) लौकिक-कला, विद्या, शिक्षाचार्य आदि (ख) धार्मिक-जैन एवं अजैन (ग) आचार्य की आठ संपदाएँ (घ) आचार्य के गुण (छत्तीस-छत्तीसी) संघ नेतृत्त्व(अ) माहात्म्य-अर्थ, प्रकार (ब) धर्म के साथ जुड़ा संघ शब्द -सामान्य अर्थ में -चतुर्विध संघ (स) संघ संचालन1. प्रभावकता 2. आचार की विशुद्धि (क) पंचाचारकी स्वयं परिपालना (ख) संघ द्वारा पालन हेतु पुरुषार्थ आचार : विभिन्न दृष्टिकोण -भारतीय आचार -पाश्चात्य आचार -जैन परंपरा में आचार के भेद-प्रभेद आचार शुद्धि के सोपान : पचांचार 1. ज्ञानाचार 2. दर्शनाचार 3. चारित्राचार 4. तपाचार 5. वीर्याचार आचार्य विषयक इतर दर्शनों की विचारणावेदों में आचार्य बौद्ध परंपरा में आचार्य