________________ . (160) उस पर अनुराग, भक्ति, प्रेम जीव में मोक्ष प्राप्ति की योग्यता प्राप्त कराता है। इनके पालन के बिना मोक्ष तो क्या सद्गति में गमन भी अशक्य हो जाता है। अतः सदाचार की पूजा, सदाचार पर प्रेम की अभिव्यक्ति आचार्य पद पर श्रद्धा उत्पन्न करती है। - आचार्य समस्त जगत् को जिनागमों की शिक्षा देते हैं, धर्मोपदेश देते हैं। उनके ज्ञान के समक्ष समस्त जगत् लघु अर्थात् शिक्षा ग्रहण करने योग्य हैं। आचार्यों का शिक्षादान उनको गुरु पद पर प्रतिष्ठित करता है। जो स्वयं को लघु मान्य करते हैं वही शिक्षाग्रहण करने में समर्थ हो सकते हैं। आचार्य : व्युत्पत्तिपरक अर्थ___ जैन परंपरा मान्य आचार्य पद के व्युत्पत्तिपरक अर्थ भिन्न-भिन्न दृष्टि बिंदुओं को लक्ष्य में रखकर किये गये हैं। जैन परंपरा अभिप्रेत अर्थों की समायोजना निम्न प्रकार से की गई है (1) आचर्यते असावाचार्य:सूत्रार्थावगमार्थ मुमुक्षुभिरासेव्यते इत्यर्थः अर्थात्-आचारण करते हैं अतः आचार्य कहलाते हैं। सूत्र एवं अर्थ के बोध के लिए मुमुक्षुओं के द्वारा जो सेवनीय अर्थात जिनकी सेवा की जाती है वे आचार्य हैं। (2) अथवा आ-मर्यादया तद्विषयविनयरूपयाचयन्ते -सेव्यन्ते जिनशासनार्थोपदेशकतया तदाकाङ्क्षिभिरित्याचार्याः। उक्तञ्च 'सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ य। गणतत्तिविप्पमुक्को अत्थं वाएइ आयरियो।' जिनशासन के अर्थ के उपदेशक होने से उनके अभिलाषी मनुष्य विनयरूपी मर्यादा से जिनकी सेवा करते हैं, उनको आचार्य कहते हैं। कहा गया है कि सूत्र तथा अर्थ के ज्ञायक, लक्षणयुक्त, गच्छ के आलम्बनभूत तथा गच्छ की चिंता से रहित, ऐसे आचार्य भगवान् अर्थ की वाचना देते हैं। (3) अथवा आचारो-ज्ञानाचारादिः पञ्चधा, आ-मर्यादया वा चारो-विहार आचारः तत्र साधवः स्वयंकरणात् प्रभाषणात् प्रदर्शनाच्चेत्याचार्याः, आह च'पंचविह आयारं आयरमाणा तट्टा पयासंता। . आयारं दंसंता आयरिया तेण वुच्चंति॥३ 1. आव. 4 अ. 47 गाथा टी. 2. भगवती वृत्ति 1 श. 1 उ. 3. आव. नि. गा. 994 भग. आरा 499, मू. आ. 509-10, नियमसार 73