________________ (107) अध्याय-4 सिद्ध-पद पंच परमेष्ठी के द्वितीयपद-सिद्ध की अवधारणा 1. सिद्ध-मुक्तात्मा -सिद्ध पद का व्युत्पत्तिपरक अर्थ -सिद्ध पद की पर्यायें -सिद्ध के भेद, गुण 2. सिद्धिगति-स्वरूप स्थिति -मोक्ष-मोक्ष के भेद 3. अष्टकर्मक्षय स्वरूप सिद्धि -अष्टकर्म-घाती एवं अघाती कर्म 4. मुक्त जीवों का उर्ध्वगमन -सिद्धों का अनुपरागमन 5. अर्हतापेक्षा भिन्नता -अवतार, ईश्वर से भिन्न सिद्धात्मा 6. सिद्ध की ऐतिहासिकता(क) हिन्दु एवं बौद्ध परम्परा में (ख) जैन पारम्परिक रूप में1. अंग आगमों में 2. अंग बाह्य आगमों में 7. अपवर्ग-मोक्ष विषयक इतर दर्शनों की अवधारणा(अ) वैदिक (वेद-ब्राह्मण-आरण्यक-उपनिषदों में) मुक्ति (ब) मीमांसा दर्शन में मोक्ष (इ) न्याय-वैशेषिक में मोक्ष (ई) सांख्य-योग दर्शन में मुक्ति (उ) बौद्धमत में निर्वाण 8. मुक्तावस्था का तुलनात्मक अध्ययन