________________ (120) मोक्ष के भेद सामान्य की अपेक्षा मोक्ष एक ही प्रकार का है किन्तु द्रव्य, भाव, भोक्तव्य की दृष्टि से अनेक प्रकार का है। धवलाकार ने इसके तीन भेद किये हैं___ जीव मोक्ष, पदगल मोक्ष एवं जीव पुद्गल मोक्ष। अन्य स्थल पर द्रव्य व भाव मोक्ष का भी उल्लेख प्राप्त होता है। द्रव्य मोक्ष तथा भाव मोक्ष किसे कहा जाय? उसका लक्षण क्या है उसका उल्लेख है कि क्षायिक ज्ञान, दर्शन व यथाख्यातचारित्र नामवाले (शुद्धरत्नत्रयात्मक) जिन परिणामों से निरवशेष कर्म आत्मा से दूर किये जाते हैं, उन परिणामों को भावमोक्ष कहते हैं तथा सम्पूर्ण कर्मों का आत्मा से अलग हो जाना अर्थात् कर्मों का आत्मा से अलग हो जाने की प्रक्रिया द्रव्यमोक्ष है। भावमोक्ष एवं जीवन्मुक्ति होना एकार्थवाचक है। इस प्रकार स्वरूप में अवस्थान ही मोक्ष है। लोक के अग्रभाग में स्थित होना, यह सब व्यवहार से है, किन्तु निश्चय से निज आत्मा में ज्यों के त्यों अत्यन्त अविचल रूप से रहना हैं। इस प्रकार मोक्ष के भेद कहे गये हैं। सिद्धिगतिः पर्याय जैन आगमों में सिद्धिगति नामक स्थान की बारह पर्यायों का कथन किया गया है, ये द्वादश नाम किस अपेक्षा से कहे गये हैं? वे क्या अर्थ भिन्नता लिए हुए है? उसकी व्याख्या औपपातिक उपाङ्ग सूत्र के टीकाकार अभयदेव सूरि निम्न प्रकार से करते हैं 1. ईषत् __ ईषत् का अर्थ है अल्प। यह पृथिवी अन्य पृथ्वियों की अपेक्षा प्रमाण में अल्प है (कम है) अतः इसको 'ईषत्' कहा गया है। 1. राजवार्तिक 1.7.14.40 छ 24 2. धवला. 13.5, 5, 823.48.1 3. नयचक्रवर्ति 159, द्रव्य संग्रह टीका 37.154.7 4. भगवती आराधना 38.134.18, पंचा. तावृ. 108, 173.10 5. स्याद्वाद मंजरी-८.८६.१ 6. औपपातिक सूत्र-१६५ 7. औपपातिक सूत्र वृतिपत्र-१६५