________________ (128) साथ ही जो यह कहा गया है कि 'स्थान से पतन' वह भी स्ववचन से विरुद्ध है, क्योंकि पतन अस्थान से होता है किन्तु स्वस्थान से कदापि नहीं। यदि स्थान से पतन भी माना जाए, तब तो आकाश आदि का अपने नित्य स्थान से पतन की प्राप्ति होने की संभावना रहे, जो कि मान्य नहीं किया जा सकता। इस प्रकार स्थान से अवश्य पतन होता है, यह कथन अनैकान्तिक है। इस प्रकार उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि सिद्धों का सिद्धालय से पतन संभव नहीं है। पूर्व में नियुक्ति करते हुए भी कथन है कि 'षिध्' धातु गत्यर्थक अर्थ वाली होने से अर्थ होता है कि निर्वृत्तिपुरी में जाने के पश्चात् उनकी अपुनरावृत्ति होती है। मोक्षनगरी में जाने के पश्चात् पुनः संसार में उनका आगमन नहीं होता। __ शक्रस्तव में भी यही उल्लेख है कि 'अपुणरावित्ति-सिद्धिगइ-नामधेयंठाणं संपत्ताणं' अर्थात् सिद्धिगति नामक स्थान को सम्प्राप्त करने के पश्चात् उनकी पुनरावृत्ति, पुनःसंसार में आगमन रूप आवृत्ति नहीं होती। अपुनरागमन संबंधी शंका-समाधान उन सिद्ध भगवन्त का सिद्धि स्थान से पुनरागमन नहीं होता, कर्माभाव के कारण। कहा है कि बीज के जल जाने पर अंकुर का प्रादुर्भाव जिस प्रकार संभव नहीं है उसी प्रकार कर्मबीज के जल जाने पर भवाङ्कुर के उत्पन्न होने की शक्यता नहीं होती।' जो आत्मा मोक्ष अवस्था को प्राप्त होकर निराकुलतामय सुख का अनुभव कर चुका, वह पुनः संसार में लौटकर नहीं आता, क्योंकि ऐसा कौन बुद्धिमान् पुरुष होगा जो सुखदायी स्थान को छोड़कर दुःखदायी स्थान में आकर रहेगा। ___ जिस प्रकार एकबार कीट से वियुक्त किया गया स्वर्ण पुनः कीट युक्त नहीं होता, उसी प्रकार जो आत्मा एक बार कर्मों से रहित हो चुका है, वह पुनः कर्मों से संयुक्त नहीं होता। ___इस प्रकार उपर्युक्त सन्दर्भो से यह निश्चित हो जाता है कि मुक्तात्मा का संसार में पुनरागमन नहीं होता। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि मुक्तात्मा की सिद्धशिला पर शाश्वत-नित्य स्थिति होती है। 1. विशेषा. 1856-1858 2. पाणिनीय धातु पाठ 48. 3. प्रति. णमुत्थुणं सूत्र, धवला 2 अ. 1 कल्पसूत्र प.