________________ (144) यह अक्षर है, उसके आगे सब शात है, अशब्द है, अभय है, अशोक है, नित्य तृप्त, स्थिर, अचल, अमृत तथा अच्युत है। इत्यादि रूपों से उसकी उपासना करनी चाहिये। इसकी उपासना से अमृतत्व को प्राप्त होता है। जब उस निर्गुण तत्त्व में विलीन हो जाता है, तो वही अमृत ब्रह्मरूप बन जाता है। उस समय इसका प्रकाश ही रूप है। जिसमें निद्रा, आलस्य, जरा, मृत्यु ,शोक नहीं है। जैसा प्रणव का रूप है, उपासक भी उसी रूप हो जाता है अर्थात् उपासक रूप, विगतनिद्र, जरारहित, मृत्युरहित और शोक रहित हो जाता है। उपनिषदों में मुक्ति ___ वैदिक परम्परा में आत्मा को ब्रह्म शब्द से अभिप्रेत किया गया है। उपनिषदों में ब्रह्म तत्त्व के साक्षात्कार के मंत्र बहुलता से मिलते है। यहाँ तक कि प्रो. विंटरनिट्ज ने सम्पूर्ण औपनिषदिक दर्शन का सार बताया है कि 'यह सम्पूर्ण विश्व ब्रह्म है, परन्तु ब्रह्म आत्मा है। डॉयसन भी औपनिषदिक दर्शन का सार आत्मा और ब्रह्म के समीकरण में ही देखते हैं। ऋग्वेद में ब्रह्म शब्द प्रयुक्ति प्रार्थना अर्थ में होती थी, वही उपनिषद् में अर्थ भिन्नता आकर जिसके लिए प्रार्थना की जाती है अर्थात् परम तत्त्व अर्थ हो गया। प्रश्न यह उठता है कि जब आत्मा और ब्रह्म में पूर्ण तादात्म्य है, दोनों एक हैं, तो यह दुःख क्यों? जन्म मरण का यह चक्र क्यों? यह बंधन क्यों? उपनिषद् के अनुसार बंधन का मूल कारण यह है कि आत्मा को अपने स्वरूप के विषय में कि वह ब्रह्म से भिन्न नहीं है, अज्ञान है। कहा भी गया है कि जो यहाँ भेद देखता है, वह जीवन-मरण के चक्र में पड़ता है। ___ इस प्रकार बंधन का कारण अज्ञान है। उपनिषदों में यह दृढ़तापूर्वक कहा गया है कि स्वयं के अज्ञान को दूर करने, या ब्रह्म के ज्ञान को प्राप्त करने के अतिरिक्त मोक्ष प्राप्त करने का अन्य कोई रास्ता नहीं है। मुण्डक उपनिषद में भी कहा है कि जिसने ब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया, उसकी हृदय ग्रन्थि दूर जाती है, सारे संशय नष्ट हो जाते हैं, उसके कर्मों का क्षय हो जाता है। 1. मैत्रायणीयमारण्यकम् प्रपाठक 4-4 2. A History of Indian Literature, Vol. 1 pt-I p.215 3. Out lines of Indian Philosophy, p.22 4. क. उ. 2.1.10 3. मु. उ.३.२.१.