________________ (114) सर्वदुःखप्रहीण जिनके समस्त दुःखों का प्रकृष्ट रूप से नाश हो गया है। अशेष दुःखों को निर्मूल करके अव्याबाध सुख का जिन्होंने वरण किया है वे सिद्ध हैं। कालगत समस्त काल को पार करके जिन्होंने शाश्वतता को वरण किया हो, वे कालगत कहलाते हैं। सिद्धों ने काल की समस्त स्थिति, पर्यायों को समाप्त कर दिया है, अतः वे कालगत कहलाते हैं। उन्मुक्तकर्मकवच ___ सर्व कर्मो से उन्मुक्त होने से, छूट जाने से उन्मुक्त कर्म कवच कहे जाते हैं / वे अजर = उम्र का अभाव, अमर = मृत्यु का अभाव, असंग = सर्व प्रकार के क्लेशों का अभाव होने से असंग कहे जाते हैं। लोकाग्रमुपगत-लोक के अग्र स्थान के प्राप्त कर लेने से लोकाग्रमुपगत कहे जाते हैं। . इसके अतिरिक्त अन्य पर्यायें भी उल्लिखित हैं- असंसारसमापन्नक, भगवान् अनारम्भी, अलेशी, अवीर्य, चरमशरीरी, सिद्धिगतिक, अनिन्द्रिय, अकायिक, अवेदक, अनाहारक, अलमस्तु, आदि अनेक संज्ञाएँ सिद्ध परमेष्ठी की उपलब्ध होती है। जिसका उल्लेख हम पूर्व में कर चुके हैं। सिद्ध के भेद सिद्ध के पन्द्रह भेद निम्न है। 1. तीर्थसिद्ध-जो तीर्थ की स्थापना के पश्चात् तीर्थ में दीक्षित होकर सिद्ध हो हैं, जैसे ऋषभदेव के गणधर ऋषभसेन आदि। ___ 2. अतीर्थसिद्ध-जो तीर्थ की स्थापना से पहले सिद्ध होते हैं, जैसे मरूदेवी माता। 3. तीर्थकरसिद्ध-जो तीर्थंकर के रूप में सिद्ध होते हैं, जैसे-ऋषभ आदि। 4. अतीर्थंकरसिद्ध-जो सामान्य केवली के रूप में सिद्ध होते हैं। 5. स्वयंबुद्धसिद्ध-जो स्वयं बोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं। 1. आव. नियुक्ति 101 (987) 2. प्रतिक्रमण सिद्धस्त्व सूत्र (सिद्धाणं-बुद्धाण) 3. स्थानांग. 1214-229