________________ (117) दूसरा प्रकार आवश्यक सूत्र के प्रतिक्रमणाध्ययन' में ये दूसरे प्रकारसे निर्दिष्ट हैं संस्थान, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श तथा वेद के आधार पर इकतीस गुणों का विभाजन इस प्रकार है 1-5 संस्थान के पाँच भेद-न परिमण्डल, न वृत्त, न त्रिकोण, न चतुष्कोण और न आयत। 6-10 वर्ण के पाँच भेद-न कृष्ण, न नील, न लाल, न पीत, न शुक्ल। 11-12 गंध के दो भेद-न सुगंध, न दुर्गन्ध / 13-17 रस के पाँच भेद-न तिक्त, न कटु, न कषाय, न अम्ल, न मधुर / 18-25 स्पर्श के आठ भेद-न कर्कश, न मृदु, न गुरु, न लघु, न शीत, न उष्ण, न स्निग्ध, और न रूक्ष। 26-28 वेद के तीन भेद-न स्त्रीवेद, न पुरुष वेद, न नपुंसक वेद 21-31 न शरीरवान्-न जन्मधारी, और न लेपयुक्त। ये इकतीस गुण आचारांग के आत्म स्वरूप की व्याख्या में भी निर्दिष्ट है। सिद्धों के गुणों में इन इकतीस गुणों के अतिरिक्त प्रसिद्ध आठ गुणों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। ये आठ गुण हैं (1) अनन्त ज्ञान, (2) अनन्त दर्शन (3) अव्याबाध सुख (4) क्षायिक सम्यक्त्व (5) अजरामर (6) अमूर्त (7) अगुरुलघु (8) अनन्तवीर्य३ . दिगम्बर मान्यता में इन आठ गुणों में कुछ भिन्नता दृष्टिगत होती है। ये अजरामर एवं अमूर्त स्थान पर सूक्ष्मत्व एवं अवगाहनत्व स्वीकार करते हैं।' भगवती आराधना एवं धवला में सिद्ध परमेष्ठी के आत्यन्तिक गुणों का भी निर्देश है। वे हैं-अकषायत्व, अवेदत्व. अकारकत्व, देहराहित्य, अचलत्व, अलेपत्व। यह उल्लेख है कि सिद्धों के आठ गुणों में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा चार गुण मिलाने पर बारह गुण भी माने गये हैं। 1. आव. प्रति. पृ. 151-152 2. आचार 1.5.6. 176 3. प्रवचन सार. 60, धवला 7-2, 1.7. गा. 4-11, 14-15 4. लघु सिद्ध भक्ति-८, वस्तु. श्रा. 537, द्र. सं. टी. 14.42.2. 5. भगवती आराधना-२१५७.१८४७, धवला: 7.2, 1, 7 गा. 4-11, 14-15