________________ (79) जबकि गीता में पुनर्जन्म और साधारण जन्म से भिन्न ईश्वर की उत्पत्ति का वैशिष्ट्य का निर्देश किया है। गीता हमें बतलाती है कि साधारण मनुष्य जिस प्रकार विकास को प्राप्त होता हुआ या ऊपर उठता हुआ भागवत जन्म को प्राप्त होता है, उसका नाम अवतार नहीं है, बल्कि जब भगवान् मानवता के अंदर प्रत्यक्ष रूप से उतर आते हैं और मनुष्य के ढांचे को पहन लेते हैं, तब वह अवतार कहलाते हैं। कहा जा सकता है कि मानवप्राणी के रूप में भगवान् के प्राकट्य की संभावना को दृष्टान्तरूप से सामने रखने के लिए अवतार होता है, ताकि मनुष्य देखें कि यह क्या चीज है और उसमें इस बात का साहस हो कि वह अपने जीवन को उसके जैसा बना सके। ___ यह अवतरण मनुष्य के आरोहण या विकास को सहायता पहुँचाने के लिए होता है। इस बात को गीता ने बहुत स्पष्ट करके कहा है ऐसा श्री अरविन्द का मन्तव्य है। अवतार प्रणाली अवतार लेने का यही उद्देश्य होता है, पर इसकी प्रणाली क्या है ? अवतार के सम्बन्ध में एक यौक्तिक या संकीर्ण विचार है जिसमें केवल इतना ही दिखाई देता है कि अवतार किन्हीं नैतिक, बौद्धिक और क्रियात्मक दिव्यतर गुणों की असाधारण अभिव्यक्ति मात्र होते हैं, जो साधारण मानवजाति का अतिक्रमण कर जाते हैं। भगवान अपने-आपको प्रकृति के अनन्त गुणों में प्रकट करते हैं और इस प्राकट्य की तीव्रता उन गुणों की शक्ति और सिद्धि से जानी जाती है। उनकी विभूति नैर्व्यक्तिक भाव से उनके गुणों की अभिव्यक्त शक्ति है, वह उनका बहिः प्रवाह है। चाहे ज्ञान रूप में हो अथवा शक्ति, प्रेम, बल या अन्य किसी रूप में और व्यक्तिक्त भाव से यह मनोमय रूप और सजीव सत्ता है जिसमें वह शक्ति सिद्ध होती है और अपने महत् कर्म करती है। इस प्रकार कोई भी महान् पुरुष का अवतार होना तो तब कहा जा सकता है कि अपने परमेश्वर और परमात्मा होने का आन्तरिक ज्ञान हो और यह ज्ञान हो 1. गीता 4.5.8 2. श्री अरविन्द/गीता प्रबंध पृ. 166-167 प्रका. पांडिचेरी : श्री अरविन्द आश्रम द्वितीय संस्करण 1984