________________ (99) जो कुछ भी सातिशय होता है उसकी निरतिशयता भी किसी न किसी वस्तु में अवश्य होती है। और वह ईश्वर में ही संभव है। विज्ञानभिक्षु लिखते हैं कि ऐश्वर्य की काष्ठा जहाँ होती है, वही ईश्वर है। इस प्रकार जिनका ऐश्वर्य अनुपम एवं तरतमभाव रहित है, वह ईश्वर है।' ईश्वर धर्मोपदेशक तथा उद्धारक है___ ईश्वर को स्वयं कोई स्वार्थ साधने का नहीं है। उसका प्रयोजन भूतानुग्रह या जीवों क उद्धार है। "ज्ञान और धर्म का उपदेश देकर सांसारिक पुरुषों का मैं उद्धार करूँगा।" ऐसा सर्वज्ञ का संकल्प होता है। इसीलिए कहा है कि आदिविद्वान भगवान परम ऋषि ने निर्माणचित्त धारण करके शास्त्रजिज्ञासु आसुरि को शास्त्र का उपदेश दिया। ईश्वर एक है पुरुषबहुत्ववादी होने पर भी योगदर्शन में ईश्वर को एक स्वीकार किया है। इस विषय में वाचस्पति मिश्र एवं विज्ञान भिक्षु दोनों ने तर्क उपस्थित किए हैं कि एक पदार्थ के विषय में विभिन्न परिणाम की इच्छा करने वाले दो ईश्वरों के होने पर, पदार्थ के किसी एक की इच्छा के अनुरूप परिणत होने से दूसरे की इच्छा पूर्ण न होने के कारण उसमें न्यूनता आ जाएगी, ऐसा दोनों टीकाकारों का अभिमत है। अतः ईश्वर एक है। ईश्वर आदि गुरु है__ पूर्व के गुरु कालविशिष्ट है। जिनके पास अवच्छेदक या विशेषक रूप से काल नहीं आता अर्थात् काल से बाधित न होने के कारण वह पूर्वोत्पन्न गुरुओं का भी गुरु है। पूर्वोत्पन्न गुरुओं से तात्पर्य दोनों टीकाकार सर्ग के प्रारम्भ में उत्पन्न ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि गुरुओं को मानते हैं। ईश्वर उनकी उत्पत्ति से भी पूर्व विद्यमान होने से उन्हें वेदादि का ज्ञान प्रदान करते हैं। 1. तत्त्व वैशारदी पृ.७७ 2. यो. वा. पृ.७४ 3. यो.भा. 1.24 4. योग भा. 1.25 5. त. वै. पृ. 69 यो.वा.पू. पृ. 47 6. यो. सू. 1.26 7. त.वै.पृ. 81, यो.वा.पृ. 81