________________ (100) ईश्वर अवतार नहीं लेते हैं__ स्मृतियों एवं पुराणों में उल्लिखित 'अवतार' के रूप में ईश्वर अवतीर्ण नहीं होते। विज्ञानभिक्षु का मत है कि अवतार ब्रह्मा, विष्णु आदि के होते हैं, ईश्वर के नहीं। ईश्वर का उत्कर्ष शाश्वतिक है____ईश्वर के उत्कर्ष में शास्त्र ही प्रमाण है। शास्त्र के विषय में ईश्वर के सत्त्वोत्कर्ष को प्रमाण माना गया है। ईश्वर और शास्त्र का जो पारस्परिक प्रामाण्य दिखाया गया है, उसमें दोष की कल्पना नहीं की जा सकती। विज्ञानभिक्षु शास्त्र एवं सत्त्वोत्कर्ष में परस्पर निमित्त-नैमित्तिक संबंध मानते हैं। __इस प्रकार महर्षि पतंजली के योगसूत्र में ईश्वर स्वरूप निर्देश किया है। साथ ही उल्लेख किया है कि उनका वाचक प्रणव है। प्रणव का जप यह ईश्वर की भावना (ईश्वर प्रणिधान) है। ईश्वर प्राणिधान से योगान्तराय दूर हो जाते हैं।' और समाधिलाभ होता है। ___ योगदर्शन में परमपद पर ईश्वर को प्रतिष्ठापित किया है। अर्हत् एवं ईश्वर की कोटि में साम्यता किसी अपेक्षा है किसी अपेक्षा से नहीं है। सर्वज्ञता, वीतरागता, उद्धारक, उपदेष्टा रूप से साम्यता है। किन्तु वे किस रूप से करते हैं इसका उल्लेख नहीं किया गया। ___ जैन मत में अर्हत् धर्म की संस्थापना करते हैं किन्तु ईश्वर का ऐसा कोई कार्य निर्देश नहीं किया गया। साथ ही अर्हत् सामान्य मानव से महामहानव के उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं ऐसा ईश्वर में नहीं। आत्मा से परमात्मा पद पर अधिष्ठित होते हैं। आध्यात्मिक विकासक्रम में सामान्य आत्मा यह पद पा सकती है। योग सम्मत ईश्वर एक है, जब कि अर्हत् एक नहीं, अपितु अनेक है। इस प्रकार अनेक समानता-विषमता अर्हत् एवं योग सम्मत ईश्वर में होने पर भी सर्वोच्च पद तो प्राप्त है। 1. यो.वा. पृ.७९-८० २.यो. वा. पृ.७० 3. व्यास भा. पृ.६६ 4. वही. 5. योग सू. 1.27-28 6. वही 1.23 7. वही 1.29 8. वही.