________________ (86) इस प्रकार बुद्ध का शरीर इन 32 लक्षणों से युक्त होता है। जिस प्रकार जैन परंपरा में अर्हत् का शरीर अलौकिक तथा 1008 लक्षण-गुणों से संपृक्त होता है। उसी प्रकार बुद्ध का शरीर विशिष्ट अलौकिकता एवं 32 लक्षणों से युक्त होता है। इनमें से कुछ अलौकिकता अर्हत् से साम्य रखती है तो कुछ पूर्णता विषमता युक्त, विलक्षण है। धर्मचक्र के प्रवर्तन हेतु ब्रह्मा द्वारा प्रार्थना जिस समय अर्हत् बुद्ध सम्यक् संबुद्ध होते हैं उस समय बुद्ध के मन में यह विचार आता है लोक मेरे उपदेश को ग्रहण नहीं करेंगे। उसी समय ब्रह्माजी आकर प्रार्थना करते हैं प्रभो! धर्म का उपदेश करें क्योंकि धर्म जानने में हमारी रुचि है। बुद्ध का सशरीर देवलोकगमन___ भगवान बुद्ध ने अपनी माता को धर्मोपदेश देने के लिए एक वर्षावास तुषित लोक में व्यतीत किया, ऐसा पालि त्रिपिटक में उल्लेख किया गया है। __साथ ही यह भी उल्लेख है कि भगवान बुद्ध एक बार शुद्धावास देवलोक में गये। जहाँ पूर्व 6 बुद्धों तथा उनके काल में जिन व्यक्तियों में प्रव्रज्या धारण की थी, उनमें से अनेक लोग इस देवलोक में देवता के रूप में जन्मे थे। उन सभी ने आकर बुद्ध को अपना परिचय दिया और बताया कि वे किस बुद्ध के शासनकाल में प्रव्रजित होकर इस देवलोक में जन्मे हैं। प्रतिहार्य जिस प्रकार जैन परंपरा में अर्हत्/तीर्थंकर के अष्ट प्रातिहार्य अवश्यंभावी होते हैं, उसी प्रकार बुद्ध प्रातिहार्य दिखलाते थे। प्रतिहार्य से तात्पर्य चमत्कार लिया गया है। अवदान के प्रातिहार्य सूत्र में प्रातिहार्य से संबंधित कथा का वर्णन है। उसमें बुद्ध द्वारा श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित के आग्रह से ऋद्धि-प्रातिहार्य दिखाने हेतु प्रार्थना की जाने पर बुद्ध ने अनेक बुद्धों की सृष्टि की। दोनों परंपरा में अन्तर यह है कि जैन परंपरा में ये आठ प्रातिहार्य देव-देवेन्द्र द्वारा निर्मित होते हैं जबकि बौद्ध परंपरा में प्रातिहार्यों को स्वयंबुद्ध द्वारा निर्माण किये जाते हैं। 1. दीघनिकाय भाग-२ महापदान सुत्त 1.6.62-64 पृ. 36 2. बौद्ध धर्म दर्शन पृ. 118 3. दीघनिकाय भाग-२ महापदानसुत्त 1.6.72-74 पृ. 39-43 4. 1. अवदान उद्धृत-बौद्ध धर्म दर्शन पृ. 118 /