________________ (94) न्यायसूत्रकार गौतम ने ईश्वर से संबंधित तीन सूत्र रचे हैं 1. कर्मफल का कारण कर्म नहीं, परंतु ईश्वर है। 2. क्योंकि पुरुष कर्म न करें तो फल मिलता नहीं। 3. कर्म एवं कर्मफल ईश्वरकृत होने से ये दोनों सिद्धान्त तर्क हीन है। उपुर्यक्त तीन सूत्रों में से गौतम दो सूत्रों को तर्कहीन मानकर तीसरे सूत्र में अपने सिद्धान्त की स्थापना करते हैं / एक कर्म फल के नियत-संबंध की अवगणना करता है तो दूसरा ईश्वर की ही अवगणना करता है। वास्तव में कर्म और कर्मफल में नियत संबंध तो है ही, परंतु इच्छित फल प्राप्ति के लिए कौन सा कर्म करना चाहिये ? यह ज्ञान ईश्वर प्रदान करता है। लौकिक विषय का ज्ञान तो उसके विशेषज्ञों से भी प्राप्त हो सकता है, किन्तु राग आदि दोषों का दूर करने के लिए कौन सा कर्म, कौन सी साधना करनी, यह ज्ञान रागादि दोषों से रहित, सर्वज्ञ ईश्वर ही करा सकता है। इस प्रकार कर्म एवं कर्मफल के नियत संबंध को जानने के लिए ईश्वर की आवश्यकता है। ईश्वर केवल उपदेष्टा है,मार्गदर्शक है, तथा कर्म फल के नियत संबंध का ज्ञान कराने वाला है। इस अर्थ में ही वह कर्मकारयिता ___दर्शन-शास्त्र में इष्ट फल मुक्ति मान्य किया है। सब मुक्ति को चाहते हैं। इस इच्छित फल के लिए कौन सा कर्म करना चाहिये ? क्या साधना करनी चाहिये, किस क्रम से करनी चाहिये, इसका ज्ञान साधना करके जो दुःखमुक्त हो चुके, जीवन्मुक्त देताहै। यह जीवन्मुक्त ही उपचेष्टा है, पथप्रदर्शक है। इस प्रकार 1. वात्स्यायन जीवन्मुक्त को ही ईश्वर मानते हैं। 2. प्रशस्तपादने ही सर्वप्रथम नित्यमुक्त सृष्टिकर्ता ईश्वर की कल्पना न्याय, वैशेषिक, में दाखिल की। 3. वात्स्यायन के जीवन्मुक्त के साथ ही बुद्ध और जैन अर्हत् की तुलना हो सकती है। 4. नित्यमुक्त सृष्टिकर्ता ईश्वर बौद्ध और जैन में है ही नहीं। इस प्रकार न्याय-वैशेषिक दर्शन में ईश्वर को परमोच्च शिखरं पर स्थापित 1. न्यायसूत्र -4.1.19-21 2. षड्दर्शन-२ (न्याय-वैशेषिक) नगीन जी. शाह, यूनिवर्सिटी ग्रंथ निर्माण बोर्ड, गुजराज राज्य)