________________ (51) (3) केवली के प्रकार सर्वथा कर्मावरण के विलय हो जाने पर केवलज्ञान स्वरूप का आविर्भाव जिनमें होता है, जिनका अज्ञानान्धकार नष्ट हो गया है, वे केवली हैं। जैन मान्यतानुसार प्रत्येक प्राणी इस सर्वोत्तम अवस्था का वरण कर सकता है। जब प्राणिमात्र इस आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त कर सकता है, तब प्रश्न उठता है क्या सभी की कक्षा, स्तर समान है? यद्यपि ज्ञान बल में साम्य होने पर भी जैन मान्यता कुछ विभाजन भी करती है। इस अपेक्षा से केवली के दो प्रकार हैं___ 1. केवली 2. अर्हत् (1) सामान्य केवली जैन परम्परानुसार प्रत्येक व्यक्ति परमात्म पद का अधिकारी हो सकता है। यद्यपि अर्हत् परमेष्ठी की. भांति केवली के जिन नाम कर्म अतिशय संयुक्त, पंचकल्याणक महोत्सव, दिव्य स्वप्न दर्शन आदि नहीं होते। ज्ञान-सीमा में अर्हत् व सामान्य केवली में साम्य होता है। केवली के अन्य भी प्रकार हैं, यथा-मूक केवली, मुण्डकेवली आदि। सामान्यतया मूक केवली के अतिरिक्त वे उपदेश भी देते हैं। धार्मिक चैतन्य जागरण तथा जन-जीवन कल्याण में धर्मोपदेश देना, उनका आचार है। सामान्य केवली द्वारा धर्मोपदेश आगमों में अनेक स्थल हैं, जहाँ पर केवली द्वारा धर्मोपदेश की चर्चा है भगवती सूत्र में केवली के पास धर्मश्रवण करके बोधिलाभ, अणगारत्व यावत् केवलज्ञान प्राप्ति का उल्लेख है। ज्ञाताधर्मकथांग में तेतलीपुत्र केवली के पास राजाकनकध्वज का श्रावकव्रत अंगीकार करने का वर्णन है। जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में भरत चक्रवर्ति का केवलज्ञान प्राप्ति के बाद दस हजार राजाओं को प्रतिबोध देने का निर्देश है। ___ इस प्रकार केवली भगवान् द्वारा धर्मोपदेश का वर्णन आगम ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। दूसरी बात यह है कि केवलज्ञान के पश्चात् आत्मकल्याण शेष ही नहीं रहता, वह तो आत्मविशुद्धि की पराकाष्ठा है। वे परकल्याण के लिए ही धर्मोपदेश देते हैं। 1. भगवती सूत्र 1.39.13-32 2. ज्ञाता. 1.14 3. जम्बू. 3.87