________________ (68) जाय? इस करुणा से अभिभूत उन अर्हत् परमात्मा ने उपदेश के माध्यम से परिवर्तन किया। उनका स्वयं का ही ऐसा अतिशय था कि उनके स्नेहिल सामीप्य में प्राणी-मात्र निवैर हो जाते थे। यह रूपान्तरण उनकी लोक मंगल की उदात्त भावना को द्योतिक करता है। मनोभावना द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण आज तक मनुष्य की जो प्रतिमा बनी है, मनुष्य और पशु के बीच जो भेद रेखा खींची गई है, उसमें महत्त्वपूर्ण धारणा है-हृदय का परिवर्तन / मनोविज्ञान की यह मान्यता है कि अन्य कोई भी प्राणी हृदय परिवर्तन करना नहीं जानता। बड़े से बड़ा अक्लमंद पशु भी हृदय परिवर्तन करना नहीं जानता। मात्र मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो हृदय परिवर्तन करना जानता है। उसने हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त की स्थापना की है और उसका प्रयोग भी किया है। मनुष्य ने अपनी मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार किया है। मनोविज्ञान के सदंर्भ में हृदय परिवर्तन का अर्थ हो सकता है-मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार। जो मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार है, वह चेतना का परिवर्तन है, हृदय का परिवर्तन है। दिशा बदल जाना, साधारण बात नहीं। आदमी एक दिशा में चलता है तो एक ही प्रकार का आचरण और व्यवहार होता है। जब दिशा बदली है, तब सारी स्थितियाँ बदल जाती है, आचरण और व्यवहार बदल जाता है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जिसने दृष्टि को बदला है, मौलिक वृत्तियों का परिष्कार किया है, हृदय का परिवर्तन किया है, मन का परिवर्तन किया है, चेतना का रूपान्तरण किया है। इन सारे संदर्भो से कहा जा सकता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है हृदय का परिवर्तन। 1.हृदय परिवर्तन का पहला सूत्र है-आत्मानुशासन।जब तक आत्मानुशासन का विकास नहीं होता, तब तक नहीं माना जा सकता कि हृदय परिवर्तन घटित हुआ है। वास्तव में हृदय परिवर्तन एक अर्मूत क्रिया है हमारी चेतना की। उसे देखा तो नहीं जा सकता, किन्तु आत्मानुशासन के विकास को देखकर मान सकते हैं कि इस व्यक्ति का हृदय परिवर्तन हो गया है। आत्मानुशासन का विकास समाज और सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठा एक महत्त्वपूर्ण अवदान है। आत्मानुशासन के बिना अहिंसा की कल्पना नहीं की जा सकती। अहिंसा का पूरा विकास / आत्मानुशासन के आधार पर हुआ है।