________________ (56) अर्हत् परमेष्ठी की माता की योनि अशुभ पदार्थों से रहित होती है। वे स्वयं अशुचि से रहित निर्मल रूप से जन्म लेते हैं तथा उनका जन्मोत्सव देव-देवेन्द्र द्वारा मनाया जाता है। जिस समय अर्हत् परमेष्ठी का जन्म होता है, उस समय परिवेश समग्र लोक में शान्त एवं सुखमय होता है। सुगन्धि वायु बहने लगती है। जन्म के समय समस्त लोक में दिव्य प्रकाश व्याप्त हो जाता है। जन्म महोत्सव के अतिरिक्त अर्हत् परमेष्ठी का अभिनिष्क्रमण (दीक्षा) महोत्सव, कैवल्य, महोत्सव तथा निर्वाण महोत्सव इन्द्रों एवं देवगणों द्वारा संपादित किये जाते हैं। जिस समय अर्हत् परमेष्ठी दीक्षा ग्रहण करते हैं, उस समय देवगण अपार धनराशि उनके कोषागार में डाल देते हैं। वे प्रतिदिन एक करोड़ बावन लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करते हैं। उनके आहार ग्रहण के समय भी देवगण सार्द्ध बारह करोड सोनैयों की वर्षा करते हैं। सर्वज्ञता की प्राप्ति होने पर रजत स्वर्णरत्नमय समवसरण (धर्मसभा-स्थल) की रचना भी देवगण करते हैं जिस में वे स्वयं तो पूर्वाभिमुख बिराजमान होते हैं, किन्तु अन्य तीन दिशाओं में उनके प्रतिबिम्ब की स्थापना उनके ही प्रभाव से देवगणों द्वारा की जाती है। जिसमें अर्हत् परमेष्ठी लोककल्याण हेतु धर्मदेशना/धर्मोपदेश देते हैं। धर्ममार्ग का प्रवर्तन करते हैं। अनुपमता___ अर्हत् परमेष्ठी का रूप सर्वांग सुन्दर दर्शाया गया है। उनके स्वरूप की उपमा अन्य भौतिक जड़ पदार्थों से कदापि संभव नहीं। उनका शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्तर उच्चत्तम होने से, अलौकिक एवं दिव्य होने से अन्य पदार्थ उस कक्षा में आ ही नहीं सकते। यद्यपि उनका अस्तित्व भी जड़ पदार्थों की भांति विनश्वर है तथापि वह अनुपमेय अतुलनीय है। अद्भुतता अर्हत् परमेष्ठी का स्वरूप, उनका रूप-लावण्य, दैविक महोत्सव, उनके अष्ट प्रातिहार्य युक्त समवसरण की रचना, यहाँ तक कि जन्म के पूर्व से उनकी हर क्रिया, उनकी स्थिति देवकृत महोत्सव सर्व जगत् को चमत्कृति युक्त प्रतीत होते हैं। फलतः लोक में अद्भुतता को प्रकट करते हैं। सर्वज्ञता त्रिकालवर्ती ज्ञान के कारण ही यथार्थ तत्व को प्रकट करती. उनकी वाणी संशय को दूर करने से चमत्कार युक्त प्रतीत होती है। उनके गौतम आदि ग्यारह गणधर शिष्यों ने अपने अन्तर्मन के संशय दूर हो जाने के फलस्वरूप ही उनका शिष्यत्व स्वीकार किया