________________ (62) 3. देवकृत अतिशय उन्नीस स्वीकार करती है। जब कि दिगम्बर परंपरा इन्हें भिन्न रूपेण मान्य करती है अ. जन्म के अतिशय ब. केवलज्ञान के अतिशय स. देवकृत अतिशय इन अतिशयों की संख्या में भी भिन्नता है। दिगम्बर परम्परा में 1. जन्म के अतिशय दस, 2. केवलज्ञान के अतिशय, ग्यारह तथा देवकृत अतिशय तेरह मान्य करते हैं। - अब हम दोनों के स्वरुप को देखें(क) सहज अतिशय 1. सुन्दर रुप, सुगन्धित, निरोग, पसीना एवं मलरहित शरीर। 2. कमल के समान सुगन्धित श्वासोच्छवास। 3. गौ दुग्ध के सदृश स्वच्छ, दुर्गन्ध रहित माँस और रूधिर। 4. चर्मचक्षुओं से आहार और नीहार का न दिखना। (ख) कर्मक्षयज अतिशय 1. योजनमात्र समवसरण में कोडाक्रोडी देव, मनुष्य और तिर्यञ्चों का समा जाना। 2. एक योजन तक फैलने वाली भगवन् की अर्धमागधी भाषा युक्त वाणी को मनुष्य, तिर्यश्च और देवताओं द्वारा अपनी भाषा में समझ लेना। 3. सूर्य प्रभा से भी तेजस्वी प्रभामंडल का सिर के पीछे होना। 4. सौ योजन तक रोग न होना। 5. वैर का न रहना। 6. ईति अर्थात् धान्य आदि को नाश करने वाले चूहों आदि का अभाव। 7. महामारी आदि का न होना। 8. अतिवृष्टि न होना। 9. अनावृष्टि न होना। 1. तिलोयपण्णति 896-914, जंबूद्वीवपण्णत्तिसंगहो 13/93-114.2 दर्शन पाहुड टी. 35.28