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विषय
सामायिक व्रत का स्वरूप, परिणामशुद्धि द्विविध प्रत्याख्यान धारण करने की प्रतिज्ञा
जीवनपर्यन्त के लिए आहार -पान और उपधि-परिग्रह त्याग की प्रतिज्ञा
जिनशासन ही सब जीवों का शरण है।
पण्डितमरण की प्रशंसा
पण्डितमरण की प्रशंसा करते हुए जन्म-मरणादि दुःखों से निर्भय होने का उपदेश
सर्वातिचारप्रतिक्रमण, आहारत्याग प्रतिक्रमण एवं . उत्तमार्थप्रतिक्रमण का संक्षिप्त स्वरूप दस प्रकार के मुण्डन का वर्णन
सामाचाराधिकार
मंगलाचरण और सामाचार की प्रतिज्ञा सामाचार शब्द का निरुक्त्यर्थ और उसके भेद औधिक सामाचार के दस भेद और उनका स्वरूप पद - विभागी सामाचार के कहने की प्रतिज्ञा और उसका स्वरूप एवं भेद
पदविभागिक सामाचार का निरूपण - प्रथम ही योग्याध्ययन के उपरान्त गुरु से अन्य धर्मक्षेत्रों में जाने की आज्ञा माँगता है तथा गुरु की आज्ञा प्राप्त कर चार-छह मुनियों के साथ विहार करता है एकविहारी कौन हो सकता है इसका वर्णन एकविहार के अयोग्य साधु का वर्णन स्वच्छन्दता से एकविहार करनेवाले साधु के संभावित दोष
साधु को किस प्रकार के गुरुकुल (साधु- संघ) में निवास नहीं करना चाहिए
गुरु - आचार्य - गणधर का लक्षण गुरु का लक्षण समागत साधु के प्रति संघस्थ मुनियों का कर्त्तव्य शरणागत साधु की आचार्य द्वारा परीक्षा परीक्षानन्तर आगन्तुक मुनि दूसरे या तीसरे दिन अपने आगमन का प्रयोजन आचार्य के पास निवेदन करे
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