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ता सव्वपयत्तेणं, परदोसविवज्जणं कुणह
॥१२॥
यदि तू तीन लोक में अपनी बढाई चाहता है तो सर्वतः पराये दोष देखना बन्द कर दे, और पराये दोषों का विवेचन करना भी बन्द कर दे ||१२||
चउहा पसंसिणिज्जा, पुरिसा सव्वत्तमुत्तमा लोए ।
उत्तम उत्तम उत्तम,
मज्झिम भावाय सव्वेसिं ॥१३॥
इस संसार में छ प्रकार के जीवों में चार प्रकार के जीव ही प्रशंसा करने योग्य है । एक सर्व सर्वोत्तम दूसरा उत्तमोत्तम तीसरा उत्तम तथा चौथा मध्यम इन चारों प्रकार के मनुष्यों की प्रशंसा करनी चाहिये ॥ १३ ॥
जे अहम ग्रहम ग्रहमा,
गुरुकम्मा धम्मवज्जिया पुरिसा ।
ते वियन निंदणिज्जा,
किंतु दया तेसु कायव्वा ||१४||