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सारसमुच्चय कुलकम्
__ हे मूढ ! किसी जीव का वध मत कर, असत्य वचन मत बोल, परधन हरण मत कर, और परदारा को सेवन करने का विचार मत कर ॥ ७ ॥ घम्मो अत्थो कामो,
अन्ने जे एवमाझ्या भावा । हरइ हरंतो जीयं,
___अभयं दितो नरो देइ ॥८॥ ___ हे जीव ! यदि तू दूसरे जीव को मारता है तो उसके धर्म अर्थ तथा काम सब की हत्या करता है। यदि दूसरे जीव को अभयदान देता है तो उसके धर्म अर्थ तथा काम को अभयदान देता है। अतः हत्या से सर्वस्व हरण करता है, अभयदान से सर्वस्व अभयदान देता है ॥ ८॥ नय किंचि इहं लोए,
__जीया हितो जीयाण दइययरं । तो अभयपयाणाश्रो, - न य अन्नं उत्तमं दाणं ॥॥
इस संसार में जीवों को अपने जीवन से प्यारा अन्य कुछ भी नहीं हैं । अतः अभयदान से उत्तम अन्य कोई दूसरा दान नहीं है ॥ 8 ॥