________________
पू० श्री भगवतीजीसूत्र का और श्रीयुगादि
का प्रारम्भ श्रावण शुद ३ शुक्रवार के दिन सूत्र की उछामणी बोलकर शा. शेषमल चमनाजी अचलाजी अपने घर पर सूत्र को जुलूस द्वारा ले नाकर रात्रिजागरण प्रभावना युक्त किया ।
श्रावण शुद ४ शनिवार के दिन अपने घर से जुलुस द्वारा लाकर उपाश्रय में पूज्यपाद आचार्य म. को संघ की समक्ष सूत्र को वहोराया । प्रथम पूजन गीनी से शा. प्रेमचन्द मनरुपजी ने किया । चार पूजन अन्य अन्य गृहस्थोंने क्रमशः रुपानाणा से करने के पश्चाद् सकल संघने भी रुपानाणा से पूजन किया । 'पूज्य श्री भगवतीजी सूत्र' का प्रारम्भ. पूज्यपाद् आचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वरजी म. सा. ने किया । द्वितीय व्याख्यान में 'श्रीयुगादिदेशना' का प्रारम्भ पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयविकासचन्द्रसूरिजी म. सा. ने किया । प्रातः सर्वमङ्गल के पश्चाद् प्रभावना हुई । दुपहर में पैंतालीस आगम की पूजा प्रभावना युक्त पढाई गई । प्रतिदिन प्रभावना युक्त पूजा का कार्यक्रम चालु रहा । प. पू. आचार्य श्रीमद्विजयविकासचन्द्रसूरिजी म. द्वारा व्याख्यान का भी लाभ प्रतिदिन संघ को मिलता रहा ।