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पु. सा. श्री कल्पगुणाश्रीजी म. के उपदेश से सुरत निवासी शा. जयन्तिलाल मफतलाल तथा कुमुद बहिन मगनलाल झवेरी की तरफ से 'श्री वीशस्थानक
महापूजन' पढ़ाया गया । (३) एक पंचरंगी तप के पारणां शा. मगराज कस्तूरजी की
ओर से और दूसरी पंचरंगी तप के पारणां शा. हजारी
मल चमनाजी पावटावाला की तरफ से हुए। (४) नवरंगी तप की भी आराधना सुन्दर हुई । (५) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ के अट्टम तप, श्री गौतमस्वामीजी
के छठ तप की तथा श्री दीपक तप की आराधना भी सोत्साह हुई। श्री वर्द्धमान तप और श्री वीशस्थानक तप में अनेक तपस्वीओं के नम्बर लगने पर श्रेणीतप में भी एक बहिन का नम्बर लगा। श्री पर्याषणामहापर्व में उपवास वाले
२ ६ ११ १० १० ११ १२५ ५० १०८ उपरान्त संख्या थी । चौसठ प्रहरी पौषध वाले चालीश संख्या में थे। श्रीसिद्धचक्र महापूजन युक्त अष्टाह्निका महोत्सव श्रीसंघ की ओर से हो जाने के पश्चात् प्रतिदिन पूजा प्रभावना का कार्यक्रम भादरवा (श्रावण) वद बारस तक भिन्न भिन्न सद्गृहस्थों की तरफ से चालू रहा ।