Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): 
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 275
________________ उस समय वहां विरामान पंजाब देशोद्धारक प. पू. आचार्य देव श्रीमद्विजय आत्म-वल्लभ ललितसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टामीन परमार क्षत्रियोद्वारक प. पू. आचार्य देव श्रीमद्विजय इन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी म. सा. आदि ठाणा२४ का सुभग संमिलन हुआ । साथ ही चातुर्मास हेतु अनेक क्षेत्रों की विनंती होने पर भी पू. आचार्य गुरुभगन्त की जन्मभूमि चाणस्मा (गुज.) में चातुर्मास की स्वीकृति दी गई। महा शुद १३ बुधवार दिनांक ३०.१-८० को उपधान तप का शुभारम्भ हुआ, एवं चैत्र शुद १ सोमवार दिनांक १७-३-८० को मालारोपण हुआ। इस उपधान तप के शुभ प्रसंग पर वहां पधारे हुये विद्ववर्य समर्थवक्ता प. पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजयभुवनशेखरसूरीश्वरजी म. सा. तथा सेवाभावी पू. मुनि श्री महिमाविजयजी म. आदि ने भी उपधान में कराने वाले श्रेष्ठि की विनंति से वहां स्थिरता की। प्रतिदिन दोनों आ. म. सा. के व्याख्यान का लाभ जनता को मिला । मालारोपण के शुभ प्रसंग पर श्री २१ छोड के उद्यापन सहित श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ महापूजन श्री सिद्धचक्र पूजन युक्त दशाह्निका महामहोत्सव संघवी श्री चुनीलाल वीशाजी की ओर से मनाया गया ।

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