Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): 
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 284
________________ उस प्रतिष्ठा के पश्चात् फिलहाल वि० सं० २०३६ में उन दोनों खड़ी मूर्तियों में से अमिझरणे दीर्घ समय तक चालु रहे। इस अनुमोदनीय प्रसंग के उपलक्ष में शा. पुखराज छोगमलजी की ओर से श्री पार्श्वनाथ के १०८ अभिषेकअष्टादश अभिषेक, अष्टापद पूजा तथा श्री चिन्तामणी पार्शनाथ महापूजन युक्त द्वि० जेष्ठ वद ८ शुक्रवार दिनांक ६-६-८० से तीन दिवसीय भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इधर भी प० पू० आ० श्रीमद्विजयइन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी म. सा० आदि का सुभग संमिलन हुआ । पू० पंन्यास श्रीभद्रानन्दविजयजी गणिवर्य आदि का भी संमिलन हुआ। शिवगंज से विहार द्वारा पोसालीया, पालड़ी, कोलर, सिरोही, जावाल, पाडीव, वेलांगडी, सनवाडा, मालगाम आदि स्थलों में पधार कर तथा व्याख्यानादि का लाभ देकर, प० पू० ० म. सा. आदि पांच ठाणे श्री जीरावला तीर्थ में पधारे। वहां पांच दिन की स्थिरता दरम्यान दो दिन पूजा का कार्यक्रम रहा । (२६) मंडार वहां से श्री परमाणतीर्थ में एक दिन स्थिरता कर दूसरे दिन सपरिवार मंडार पधारते हुए प० पू० वा.

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