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सारसमुच्चय कुलकम्
जाणइ जणो मरिजइ,
पेच्छई लोगो मरंतयं अन्नं । नय कोइ जए श्रमरो,
कह तह वि अणायरो धम्मे ? ॥३॥ जीव जानता है कि उन्हें मरना तो है ही, दूसरों को मरता हुआ देखता भी है, तथा संसार में कोई अमर रहा नहीं है, फिर भी धर्म का अनादर क्यों करता है ? ॥ ३ ॥ जो धम्म कुणइ नरो, ___ पूइजइ सामिउ व्व लोएण। दासो पेसो व्व जहा,
- परिभूयो अत्थतल्लिच्छो ॥४॥ जो धर्म करता है वह उनमें स्वामी के समान पूजा जाता है। तथा जो एक मात्र अर्थ के पीछे ही तल्लीन है वह दास तथा नौकर के समान पराभव को प्राप्त होता है ॥ ४ ॥ इय जाणिऊण एयं,
वीमंसह अत्तणो पयत्तेण ।