________________
प्रमादपरिहार कुलकम्
[ २०१
र प्रमादपरिहार कुलकम् ।
हिन्दी सरलार्थ युक्त ]
NAMEER
AMOURU PASHIKARINAK
दुक्खे सुखे सया मोहे, अमोहे जिणसासणं । तेसिं कयपणामोऽहं, संबोहं अप्पणो करे ॥१॥ ___ अर्थ-जिसने दुःख में और सुख में, मोह में तथा अमोह में जिनशासन को स्वीकार किया है। उसको किया है प्रणाम जिसने ऐसा मैं सम्यक् प्रकार के बोध को अपना करता हूं अर्थात् स्वीकारता हूं ॥१॥ दसहि चुल्लगाइहि, दिढ़तेहिं कयाइयो। संसरंता भवे सत्ता, पार्वति मणुयत्तणं ॥२॥
अर्थ-संसार में परिभ्रमण करते हुए जीव दश दृष्टांत द्वारा दुर्लभ ऐसे मनुष्यत्व को कदाचित् (सद्भाग्य के योग) प्राप्त करते हैं ॥ २॥