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प्रमादपरिहार कुलकम्
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रूप प्रमाद ही है ) तस तरह प्रमाद द्वारा जीव अनन्तीवार विराधक हुआ है ॥ २१ ॥ तयावत्थं हो खड्डु, देवेण पडिबोइयो। अजसादमुणी कठठं, पमारणं अणंतसो ॥२२॥ ___अर्थ--उसी अवस्था वाले पृथ्वीकायादिक नामवाले क्षुल्लकों को (बालकों को) विनाश करने वाले अषाढामुनि आर्य को देव ने प्रतिबोध दिया । हा इति खेदे ! कष्टकारी हकीकत है कि प्रमाद द्वारा यह जीव अनन्तीवार गीरता है ॥२२।। सूरिवि महुरामंगू, सुत्तपत्थधरा थिरं । नगरनिद्धमणे जक्खो, पमाएणं अणंतसो ॥२३॥
अर्थ-मथुरावासी मंगु नाम के आचार्य सूत्र अर्थ को धारण करने वाले और स्थिर चित्त वाले होने पर भी नगर की खाल में यक्ष हुए। इस तरह प्रमाद द्वारा अनंतीवार होता है ॥२३॥ जं हरिसविसाएहिं, चित्तं चिंतिजए फुडं। महामुणीणं संसारे, पमाएणं अणंतसो ॥२४॥ ___ अर्थ-भानन्द और विषाद द्वारा मुनिओं जो स्पष्टपणे विचित्र चिन्तवन कर रहे हैं, वह उन्हों को संसार में परिभ्रमण कराते हैं । इस तरह प्रमाद अनंतीवार करता है ॥२४॥