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तम्हा परिमिलूहाहारेण समयभावियमणं । होऊण इत्थियाओ, दूरेणं वजिव्वा ॥ ११ ॥
वैराग्यरंग कुलकम्
अर्थ - अतः परिमित आहार वाले, समय के अनुसार मन से स्त्रियों से दूर रहना चाहिये तथा उनके व्यवहार हाव भाव में रत कभी भी न रहना चाहिये || ११ || जम्हा मणेण श्रराणं, चिंतंति भांति श्रन्नमेव पुणो । वायाए कारण य तायो अन्नं चित्र कुांति ॥१२॥
अर्थ - स्त्रियां मन से अन्य को याद करती है, चिन्तन अन्य का करती है और मनो विनोद पूर्ण अन्य से करती है । कत्थ वि असच्चरोसं, दंसेंति कहिं चि अलियरतोसं । कस्स विदेति जोसं हेलाइ भगांति पुण मोसं | १३ |
अर्थ - स्त्री किसी पर अत्यन्त रोष दिखाती है, किसी पर अत्यन्त तोष दिखाती है, किसी को दोष देती है और खेल खेल में ही असत्य बोल देती है || १३|| कत्थ विकुति हावं, कत्थ वि पयडंति नियहिश्रयभावं । वलोव पावं, पसवंति कुणंति मणावं ॥ १४॥
अर्थ- स्त्री किसी के साथ हावभाव करती है, किसी के साथ अपने हृदय का भाव प्रकट करती है, जो दृष्टि मात्र से ही पाप प्रसविनी है तथा मनोताप उत्पन्न करने वाली है || १४ ||