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.१८२ ] इरियावहि कुलकम् गिनते हुए देव देविओं सहित नवाणु भेद देवों के होते हैं ॥८॥ अपजपज्जत्तभेएहिं सयट्ठाणुया,
भवणवण जोइ वेभाणिया मिलिया। अहिश्र तेसट्टी सवि हुंति ते पणासया,
अभिहयापय दसय गुणि प्र जाया तया॥१॥ इन नब्बाणु के पर्याप्मा और अपर्याप्ता दो दो गिनते हुए भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष और वैमानिक इन चारों के मिलकर अट्ठाणु भेद होते हैं इस प्रकार १४+४८+३. +१९८- ५६३ भेद नरकादि चारों गतियों के जीवों के हुए, उन्हें अभिहयादिक दश दश पदों से गिनते हुएपंच सहसा छत्य भेय तीसाहिया,
रागदोसेहि ते सहस एगारसा। दुसयसट्ठी ति मणक्यणकाए पुणो,
सह सतेत्तीस सयसत्त असिई घणो ॥१०॥ पांच हजार छसौ तीस भेद हुए, उन्हें राग और द्वेष से गुणा करते हुए ग्यारह हजार दो सौ साठ भेद कुल हुए,