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वैराग्य कुलकम्
अर्थ-पिता, माता, बन्धु, बहन, पत्नी और पुत्र रूपे सर्व जीवों को सर्व जीवों के साथ अनंतीवार सम्बन्ध हुआ है ॥६॥ ता तेसिं पडिबंध, उवरिं मा तं करेसु रे जीव !। पडिबंधं कुगामाणो, इहयं चिय दुक्खियो भमिसि॥१०॥
अर्थ--इसलिये हे जीव ! उन्हों में प्रतिबन्ध (राग) न कर, जो उन्हों की साथ प्रतिवन्ध (राग) करेगा तो तु इधर भी दुःखी हो जायगा ।। १०।। जाया तरुणी श्राभरणवजिया, पाढियो न मे तणयो। धूया नो परिणीया, भइणी नो भत्तणो गमिया। ११ । ____ अर्थ--मेरी पत्नी आभरण-आभूषण बिना की है, मैंने पुत्र को अभी तक पढाया नहीं है, पुत्री की शादी की नहीं है, बहिन अपने पति के घर जाती नहीं है ।।११।। थोवो विहवो संपइ, वट्टइ य रिणं बहुव्वेश्रो गेहे। एवं चितासंतावदुभियो दुःखमणुहवसि [युग्मं]।१२। ___ अर्थ-धन अल्प है, अभी शिर पर देवा हो गया है, गृह में अति उद्वेग-क्लेश चल रहा है, ऐसी चिन्ता सन्ताप से दुःखी हो कर तु दुःख का अनुभव करता है ।। १२ ।।