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इरियावहि कुलकम्
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पित्तादि (चौदह स्थानों में ) उत्पन्न होते हुए अपर्याप्ता संमृर्छिम मनुष्यों का १.१ इस प्रकार मनुष्य जन्म में ३०३ मेद होते हैं ॥ ५॥ भवणवइदेव दस पनर परम्मिया,
जंभगा दस य तह सोल वंतरगया। चर थिरा जोइसा चंद सूरा गहा, ।
तह य नक्खत्त तारा य दस भावहा ॥७॥ देवों में भवनपति देवों के दस, परमाधार्मिक के पन्द्रह, तिर्यग जंभक के दस तथा व्यन्तर के सोलह और चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारा ये पांच चर और पांच स्थिर मिलकर कान्तिमान ज्योतिष के दस भेद होते हैं ॥७॥ किब्बिसा तिगिण सुर बार वेमाणिया,
भेय नव नव य गंविज लोगंतिया। पंच श्राणुत्तरा सुखस, ते जुया,
एगहीणं सयं देवदेवी जुश्रा ॥॥ एवं किल्बिषी देव के तीन मेद, बारह भेद वैमानिक के, नौ ग्रेवेयक के, नौ लोकान्ति के, पांच अनुत्तर के, ये सब