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सारसमुच्चय
सारसमुश्चय कुलकम्
जो धम्माो चुक्को , ___ सो चुक्को सव्वसुक्खाणं ॥५॥
यह समझकर हे जीव ! धर्म की कठिनता को सहन कर । कारण कि जो धर्म से च्युत होता है वह सर्व सुखों से वंचित होता है ॥ ५॥ धम्मं करेइ तुरियं,
धम्मेण य हुति सव्व सुक्खाई। सो अभयपयाणेणं,
पंचिदिय निग्गहेणं च ॥॥
अतः हे जीव ! तू शीघ्र धर्म का आचरण कर, धर्म से ही सर्व सुखों को प्राप्त कर । और यह धर्म अभयदान देने से तथा पंचिन्द्रियों का निग्रह करने से ही प्राप्त होता है ॥६॥ मा कीरउ पाणिवहो,
मा जंपह मूढ ? अलियवयणाई । मा हरह परधणाई, मा परदारे मई कुणाइ
॥७॥