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________________ __१६४] सारसमुच्चय सारसमुश्चय कुलकम् जो धम्माो चुक्को , ___ सो चुक्को सव्वसुक्खाणं ॥५॥ यह समझकर हे जीव ! धर्म की कठिनता को सहन कर । कारण कि जो धर्म से च्युत होता है वह सर्व सुखों से वंचित होता है ॥ ५॥ धम्मं करेइ तुरियं, धम्मेण य हुति सव्व सुक्खाई। सो अभयपयाणेणं, पंचिदिय निग्गहेणं च ॥॥ अतः हे जीव ! तू शीघ्र धर्म का आचरण कर, धर्म से ही सर्व सुखों को प्राप्त कर । और यह धर्म अभयदान देने से तथा पंचिन्द्रियों का निग्रह करने से ही प्राप्त होता है ॥६॥ मा कीरउ पाणिवहो, मा जंपह मूढ ? अलियवयणाई । मा हरह परधणाई, मा परदारे मई कुणाइ ॥७॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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