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सारसमुच्चय कुलकम्
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नरए जिय ! दुस्सह वेयणाउ,
पत्ताउ जायो प(त)ई मूढ ! जइ ताश्रो सरसि इन्हि,
भत्तं पि न रुचए तुज्म ॥१७॥ ___ हे मूढ जीव ! जो दुःख तूने नरक में भुगते हैं उनको यदि याद करें तो भोजन भी नहीं कर सकता । अर्थात् भावी कर्म दुःखों की याद आज के जीवन को भी व्याकुल कर देती है ॥ १७ ॥ अच्छंतु तावनिरया,
जं दुक्खं गमवासमझमि । पतं तु वेयणिज्ज,
तं संपइ तुझ वीसरियं ॥१८॥ अरे ! नरक की बात तो छोड, इस जीवन में भी गर्भवास में जो तूने आशातावेदनीय दुःख भुगते हैं जो तू अब भूल गया है वे यदि याद करे तो फिर तू पाप करने का नाम भी छोड देगा ।।१८।। भमिऊण भवग्गहणे,
दुक्खाणि य पाविऊण विविहाई।