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खामणा कुलकम्
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जिण सिद्धा सरणं मे. साह धम्मो य मंगलं परमं । जिण नवकारो परमो, कम्मक्खयकारणं होउ॥३५॥
जिनेश्वर देवो, श्री सिद्ध भगवंत, साधु मुनिराज तथा जिन कथित धर्म इन चारों की शरण हूँ, ये चारों मेरे लिये परम मंगल हैं, पंचपरमेष्ठि नमस्कार महामन्त्र मेरे लिये कर्मक्षय का कारण बने ॥३॥ इय खामणा उ एसा, चउगइ वावन्नयाण जीवाणं । भावविसुद्धीए महं, कम्मक्खयकारणं होउ ॥३६॥
इस प्रकार की हुई यह क्षमा याचना चारों गतिओं में भ्रमित जीवों को विशुद्धि का तथा कर्मक्षय का हेतु बने, या चारों गतिओं में रहे हुए जीवों के साथ भाव विशुद्धि पूर्वक की गई क्षमा याचना मेरे आत्मा के कर्मक्षय का कारण क्ने ॥ ३६ ॥ ।। इति श्री खामणा कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ।।