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खामणा कुलकम् [ १५६ भवणवइणं मज्झे, श्रासुरभावम्मि वट्टमाणेणं । निद्दय हणणमणेणं, जे दूमिया ते वि खामेमि ॥२८॥ ___ यदि भुवनपति निकाय में अत्यन्त कुपितभाव वश मैंने निर्दय और हिंसक मन से किसी प्राणी का मन दुखाया हो
तो उन सबसे में क्षमा याचना करता हूँ ॥ २८ ॥ वंतररुवेणं मए, केली किल भावो य जं दुक्खं । जीवाणं संजणियं, तं पि य तिविहेण खामेमि ॥२६॥
व्यन्तर देव रूप में क्रीडा प्रिय स्वभाव से मैंने अन्य जीवों को दुःख उपजाया हो तो उन सबसे क्षमा याचना करता हूं ॥ २६ ॥ जोइसिएसु गएणं, विसयामिसमोहिएण मूढेणं । जो कोवि को दुहियो, पाणी मे तं पि खामेमि ॥३०
ज्योतिष्क देवत्व में प्राप्त विषयों की आसक्ति से मुझे मृढ बने मेरे द्वारा कोई जीव को दुःख दिया गया हो तो मैं उन सबसे क्षमा याचना करता हूँ॥ ३० ॥ पररिद्धिमच्छरेणं, लोहनिबुडडेण मोहवसगेणं। अभियोगिएण दुक्खं, जाण कयं ते वि खामेमि॥३१