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तपः कुलकम्
६८ ] पुत्वभवे तिव्वतवो,
तवियो जं नंदिसेण महरिसिणा। वासुदेवो तेण पित्रो,
जागो खयरी सहस्साणं ॥७॥ पूर्व भव में नंदिषेण महर्षि ने उग्र तप किया जिसके प्रभाव से वासुदेव हुए वे हजारों विद्याधारियों के पति बने ॥७॥ देवा वि किंकरन्तं,
कुणंति कुल जाइ विरहिवाणं पि । तव मंतपभावणं,
हरिकेसबलस्स व रिसिस्स ॥८॥ तीव्र तप रूप मन्त्र के प्रभाव से हरिकेशीबल ऋषि के पास कुल जातिहीन भले ही न हो किन्तु उनका भी दासत्व देवताओं ने स्वीकार किया था ।। ८॥ पडसय मेगपडेणं
एगेण घडेण घडसहस्साई। जं किर कुणंति मुणिणो,
तवकप्पतरुस्स तं खु फल ॥१॥