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भाव कुलकम्
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भावचित्र परमत्थो,
भावो धम्भस्ससाहगो भणियो। सम्मत्तस्स वि बीयं,
भावच्चिय विति जगगुरुणो ॥१६॥ आत्मा का शुभ भाव ही परमार्थ तत्व है, भाव एवं श्रद्धा ही धर्म का साधक है । तथा भाव ही सम्यक्त्व का बीज है । ऐसा त्रिभुवन गुरु श्री तीर्थङ्करों का उपदेश है ।।१६।। किं बहुणा भणिएणं,
तत्तं निसुणेहभो महासत्ता । मुक्खसुहबी यभूत्रो,
जीवाण सुहावश्रो भावो ॥२०॥ अधिक क्या कहूँ, हे महा सत्वश.लिओं ! मैं तत्वस्वरूप एक ही वचन कहता हूँ सुनो! मोक्ष सुख का बीज स्वरूप भाव ही है और वही जीवों के लिये सुखकारी है ।। २० ।। इअदाणसीलतवभावणाश्रो,
जो कुणइ सत्तिभत्ति परो।