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श्री गौतम कुलकम्
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न धम्मकज्जा परमत्थिकज्ज,
न पाणिहिंसा परमं अकज्ज । न पेमरागा परमत्थि बंधो,
न बोहिलाभा परमत्थि लाभो ॥१२॥ ____धर्म कार्यों से श्रेष्ठ दूसरा कोई कार्य नहीं है, जीव हिंसा से बढकर दूसरा कोई अकार्य नहीं है, प्रेमराग के वन्धन से उत्कृष्ट कोई वन्धन नहीं है तथा बोधि लाभ से उत्कृष्ट कोई लाभ नहीं है ॥ १२ ॥ न सेवियव्वा पमया परका,
न सेवियव्वा पुरिसा विजा। न सेवियव्या ग्रहमा निहीणा,
न सेवियव्वा पिसुणा मणुस्सा ॥१३॥ बुद्धिमान पुरुष को परस्त्री सेवन नहीं करना चाहिये, उच्च कुलवान होते हुए विद्याहीन की सेवा नहीं करना चाहिये, आचार से भ्रष्ट हों उसे तथा नीच कुलवान् को भी नहीं सेवना चाहिये, तथा चुगलखोर की सेवा भी नहीं करना चाहिये ॥ १३॥ जे धम्मिया ते खलु सेवियव्वा,
जे पंडिया ते खलु पुच्छियव्वा ।