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खामणा कुलकम्
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जलयरमज्भगएणं, अणेगमच्छाइरूवधारेणं । श्राहारट्ठा जीवा, विणासिया ते वि खामेमि ॥६॥
पंचेन्द्रिय तिर्यश्च में जलचर रुप मत्स्य मच्छादि अनेक योनि मैंने जन्म धारण करके आहार के लिये मत्स्य न्याय से छोटे जीवों को नष्ट किया उन सबके लिये त्रिविध प्रकार से क्षमा चाहता हूं ॥ ६ ॥ छिन्ना भिन्ना य मए, बहुसो दुठेण बहुविहा जीवा। जे जलमज्भगएणं, ते वि यतिविहेण खामेमि ॥१०॥
जलचर योनि में मैने दुष्टता से बहुत जाति के जीवों को सताया नष्ट किया एवं भक्षण किया उन सबसे मैं विविध प्रकार से क्षमा मांगता हूँ ॥ १०॥ सप्पसरिसबमज्झे, वानरमजारसुणहसरहेसु । जे जीवा वेलविश्रा, दुक्खत्ता ते वि खामेमि ॥११॥
सर्प घो-नकुल तथा वन्दर, बिल्ली, श्वान और शरभ ( अष्टापद ) आदि जातिओं में उत्पन्न जिन जिन जीवों को सताया हो उन सबसे विविध प्रकार से बमा मांगता हूं ॥ ११ ॥