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खामणा कुलकम्
तिरियाणं चिय मज्झे,
पुढवीमाईसु खारभेएसु। अवरोप्परसत्थेणं,
विणासिया ते वि खामेमि ॥७॥ जब मैं तिथंच योनि 'खार मिष्ट' वर्णगन्ध रसस्पर्शादि भेद वाले पृथ्वी कायादि में जन्मा तव खारे पानी से मीठे पानी वाले जीवों को अर्थात् विरोधी प्रकृति वाले जीवों को परस्पर शस्त्र रूप में जिन जिन जीवों का नाश किया उन सबको मैं खमाता हूं क्षमा चाहता हूं ॥ ७ ॥ बेइंदियतेइंदिय
चरिंदिय माइणेगजाइसु। जे भक्खिय दुक्खविया,
ते वि य तिविहेण खामेमि ॥८॥
दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रियादि जातिओं में विविध योनियों में उत्पन्न हुआ, और जिन जिन जीवों का भक्षण किया उन सब को त्रिविध खमाता हूं ॥८॥